धनबाद।आगामी संभावित लोकसभा और विधानसभा चुनाव 2024 में सिंदरी का मुद्दा गहरा असर डालेगा. साथ ही सिंदरी विधानसभा में अपनी पहचान और भविष्य तलाश रहे युवाओं के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि सिंदरी टाउन के 52 बूथों के करीब 40 हजार से अधिक मतदाताओं का भविष्य निर्धारण फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआइएल) के हाथों में है. और अतिक्रमण हटाने को लेकर जो कदम एफसीआइएल ने उठाया है वह सिंदरी विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में गहरा प्रभाव डालने में पूर्णतः सक्षम है.
सिंदरी टाउन की जनता भाजपा के कोर वोटर हैं. एफसीआइएल यदि अतिक्रमण हटाने के साथ बसाती है तो भाजपा की वोट बैंक में इजाफा निश्चित है. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को सिंदरी के सभी बूथों से कुल मतदान 23 हजार गिरे वोट में से करीब 19 हजार वोट मिले थे. वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को करीब 13 हजार वोट मिले थे. भाजपा को दो दशक से सिंदरी टाउन से जबरदस्त वोट मिला है. सिंदरी में हर्ल खाद कारखाना स्थापना के बाद से सिंदरी की जनता भाजपा के प्रति कृतसंकल्पित हो उठा था. लेकिन, अतिक्रमण हटाने का एफसीआइएल की मंशा से सिंदरी के सत्तर प्रतिशत लोग आतंकित हो गए हैं. उन्हें घर से बेघर होने, काली कमाई बंद होने समेत तमाम नि:शुल्क आधारभूत सुविधाओं का छीन जाने का भय इस कदर सता रहा है कि कुछ सुझ नहीं रहा.
धनबाद भाजपा सांसद पशुपतिनाथ सिंह गुहार तो सुन रहे हैं पर उनकी विवशता जैसे उन्हें बांध रखा है. सहयोग का पूरा भरोसा दे रहे हैं लेकिन लोगों की ऊहापोह पर विराम लगाने में अबतक असक्षम हैं. सिंदरी टाउन के लोग विधायक की अनुपस्थिति का दंस भी झेल रहे हैं. विधायक के ना होने से भाजपा कार्यकर्ता घट घट में बंटे हुए हैं. विपक्ष के मासस, कांग्रेस, जेएमएम, राजद, सीपीआई, सीपीएम समेत तमाम राजनीतिक दल अपनी रोटी सेंकने की जुगत में जुटा हुआ है. अवसर की तलाश रहती है और अवसर मिलते ही सहानुभूति का अस्त्र शस्त्र प्रयोग होने शुरू हो जाते हैं. भाजपा के अतिरिक्त अन्य दलों का जनाधार सिंदरी टाउन में नहीं होने का पूर्णतः दोषी इनके कार्यकर्ता और पदाधिकारी ही हैं. इनलोगों ने अपने स्वार्थ सिद्ध को छोड़कर कभी भी जनता की पीड़ा को समझने का प्रयास नहीं किया. फलस्वरूप, जनाधार नहीं बना पाए. और मतदाताओं ने विकल्प में भाजपा को चुन लिया और उनके ही हो गए हैं. अब, इनके सामने चुनौती खड़ी है जो इन्हें भाजपा से पृथक संभावनाएं तलाशने की प्रेरणा दे रही है.
ऐसे में सिंदरी विधानसभा में अपने राजनीतिक भविष्य तलाशने वाले युवाओं और श्रमिक यूनियन के नेताओं के लिए जहां सुनहरा मौका है. वहीं कठिन चुनौती भी है. अतिक्रमण हटाने के विरोध में बंटे अलग अलग घट को अगर देखा जाए तो इसवक्त जनता श्रमिक संघ के संयुक्त महामंत्री गौरव वक्ष उर्फ लक्की सिंह का पलड़ा भारी है. लक्की सिंह अतिक्रमण की मार झेलने वाले लोगों के लिए राहत का मरहम लीज का प्रावधान को लेकर चर्चा में हैं और लक्की साबित हुए हैं. जहां अन्य घट के पास एक दर्जन, दो दर्जन लोगों का समर्थन हासिल है वहीं लक्की सिंह को शुरुआत से करीब चार सौ लोगों का समर्थन हासिल है. और एफसीआइएल के आंदोलन के खिलाफ भारी संख्या में लोगों का मिला समर्थन ने यह साबित किया है कि लक्की सिंह का नेतृत्व उन्हें कबूल है.
लक्की सिंह के लिए जहां अपने व्यक्तित्व को बनाए रखना चुनौती है वहीं लक्की के विरोध में उठे घट घट के नेतृत्वकर्ता के लिए भी बड़ा चुनौती है. सिंदरी में देखा जाए तो आनेवाले समय में डोमगढ़, एस एलटू, मनोहरटांड समेत एफसीआइएल के जमाने पर अतिक्रमण कर बसे लोगों पर भी गाज गिरना तय है. इस हालत से अब कोई भी राजनीतिक दल अनभिज्ञ नहीं है. लेकिन, आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी फूंक फूंक कर कदम उठाना चाहते हैं. वहीं भविष्य की तलाश में कुछ युवा अपना प्रयास बनाने की होड़ में जद्दोजहद कर रहा है. ताकि, सफलता के स्वाद पर कहा जा सके की इनका प्रयास सार्थक हुआ. इस कड़ी में जहां सिंदरी के विजय पांडेय भाजपा के प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से मिलकर ज्ञापन सौंप रहे हैं और लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम से फोटोशूट के जरिए संदेश दिया जा रहा है कि वे सिंदरी के जनता के लिए प्रयत्नशील हैं. वहीं अजय कुमार, रामू मंडल जैसे व्यक्ति लोगों की सहानुभूति जुटाने के लिए जनसंपर्क के साथ धनबाद जिला के सभी विधायकों से एफसीआइएल के दंस से बचाने के लिए गुहार पत्र सौंप रहे हैं. यानी धीरे धीरे राजनीतिक पृष्ठभूमि तैयार हो चुका है. पर्दे के पीछे और बाहर सह और मात का खेल जोरशोर से शुरू है. हर कोई संवेदना की आड़ में सिंदरी के मतदाताओं का भरोसा जितना चाहता है.
लेकिन, यह इतना सहज नहीं है. एफसीआइएल ने जिन शर्तों पर अपने वीआरएस और वीएसएस कर्मियों को आवास लीज पर उपलब्ध कराया था. उन शर्तों पर अन्य को लीज कदापि नहीं दिया जा सकता है. इसके व्यापक कारण है. एक तरह से एफसीआइएल के वीएसएस और वीआरएस कर्मी शहीद हुए हैं. कारण, उन्हें उनके सर्विस काल में जबरन मृत्यु दे दी गई. और इसके भरपाई में आवास की सुविधा मुहैया कराया गया था. लेकिन, जो लोग अतिक्रमण कर बसे हैं उन्हें वीएसएस और वीआरएस कर्मी के श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है?
ऐसे में एफसीआइएल को वीआरएस और वीएसएस नीति से पृथक नीति लागू करनी होगी और इस नीति का भार चुकाने में सिंदरी के अतिक्रमणकारी लोगों में से 80 प्रतिशत नाकाम हो सकते हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो सिंदरी के करीब दस हजार से अधिक परिवारों का भविष्य अब राजनीतिक धुरी पर टिक गया है. यह धुरी जिस ओर जाएगी उस ओर ही राजनीतिक समीकरण. मासस के बबलू महतो, कांग्रेस के संजय महतो, भाजपा के धर्मजीत सिंह, जेएमएम के मुकेश सिंह जैसे युवाओं के लिए सिंदरी की जनता का समर्थन उन्हें विधानसभा तक पहुंचा सकता है. लेकिन, अबतक सिंदरी के लोगों से उनकी दूरी उनके लिए अवसर को खोने जैसा ही है. होगा क्या यह तो भविष्य के गर्भ में है. लेकिन, इतना जरूर तय है कि सिंदरी का मुद्दा आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में गहरा प्रभाव डालेगा.
उपरोक्त लेख मनोज मिश्र जर्नलिस्ट की है।उनके एक एक शब्द को हु ब हू पोस्ट किया गया है।कोई छेड़छाड़ नही की गई है।लेख के लिए विवाद उत्पन्न होने पर मनोज मिश्र खुद उत्तरदायी होंगे।वेद भारत पोर्टल इसके लिए जिम्मेवार नहीं होगा।